सुकून – संदीप बोबडे

॥ बोबडे बोल ॥©

॥ सुकून ॥

वो इस्कुल के साथी
वो सुकून के रिश्ते
वो काॅलेज के साथी
साकी मयखानें हँसते हँसते ।

वो मुहल्ले के साथी
मंदिरों के रास्ते
ये जिंदगी गुजारी
यूँ जमाने के वास्ते ।

ये दर्दी जमाना
सब जानता है
छुपाते जो ग़म अपनें
उन्हें रब मानता है ।

खिले जो पतझड में
हैरत वो मैं हूँ
लिखूं सबकी आहें
वो ग़ैरत भी मैं हूँ ।

खुला दिल है मेरा
पर दरपन टूटा है
है दोस्त वो कितनें
पर दिल क्यूँ अकेला है ।

कह दो हमें भी
कुछ खुदा के ही वास्ते
वो काॅलेज के साथी
साकी मयखानें हँसते हँसते ।
वो इस्कूल के साथी ….
वो सुकून के रिश्ते ।

ग़र हूँ अकेला मैं
तो नम आँखें ना खोलो
पल दो पल कीमती
मेरे भी हो लो …..

बनों हमराही
ना छोड़ो तरसते
वो काॅलेज के साथी
साकी मयखानें हँसते हँसते ।

वो इस्कूल के साथी
वो सुकून के रिश्ते
वो सुकून के रिश्ते
वो सुकून के रिश्ते
मयखानें हँसते हँसते
वो सुकून के रिश्ते प
वो सुकून के रिश्ते

॥ बोबडे बोल ॥©

©संदीप बोबडे

॥ इक गज़ल ॥