॥ बोबडे बोल ॥ ©
कटी पतंग और जिंदगी
वो बचपन की दौड
किसी कटी पतंग के पिछे…
वो लकडी की लग्गी
कई पेडों के निचे…
सुकून था वो दौड मे
जो लढना सिखलाता
हासिल हुवी कटी पतंग – तो
जीत का अहसास दिलाता…
कहां खो दिया वह वक्त
क्यों शरम सर चढ गई
जोशीली जिंदगी वोह
क्यों जिम्मेदार हो गई…
पढ लिखकर भूल चुके
वो जिद लगाकर दौडना
कठिणाइयां लांघ कर
जित अपनी ओर मोडना….
क्या कर रहे है अब
पैसा कमाने वास्ते…
दुर हुवे दोस्त और वो घर के रास्ते
लौटादो मुझे बचपन..वो खिलखिलाता
हासिल हुवी कटी पतंग – तो
जीत का अहसास दिलाता…
जीत का अहसास दिलाता…
जीत का अहसास दिलाता…
॥ बोबडे बोल ॥©
©संदीप बोबडे